ग्लोबल वॉर्मिंग
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ग्लोबल वॉर्मिंग, मने कि बैस्विक गरमाव आ जलवायु में बदलाव पछिला लगभग एक सदी के समय में धरती के जलवायु सिस्टम में औसत तापमान के बढ़ती आ एकरा से जुड़ल परभाव सभ खातिर इस्तेमाल होखे वाला शब्दावली हईं सऽ।[1][2] कई तरह के बैज्ञानिक सबूत ई देखा रहल बाने कि जलवायु सिस्टम गरम हो रहल बाटे।[3][4][5] उन्नईसवीं सदी के बीच के दौर में तापमान नापे खातिर अइसन बैज्ञानिक उपकरण सभ के बिकास भइल जे 1950 से पहिले मौजूद भी ना रहलें आ इनहन से नापल रिकार्ड में पुराजलवायु बिज्ञान के रिकार्ड सभ के जोड़ के हजार साल से भी पाछे के जलवायु के बारे में जानल जा सकत बा।[6]
साल 2013 में आइपीसीसी (IPCC) के पाँचवा रपट में ई साफ़ कहल गइल कि "बीसवीं सदी के मध्य के बाद से गरमाहट में जवन बढ़ती देखल जा रहल बा ओकर सभसे प्रमुख कारण मनुष्य के प्रभाव के होखले के बहुत ढेर संभावना बा"।[7] सभसे बड़ा पैमाना पर मनुष्य के परभाव ग्रीनहाउस गैस - कार्बनडाई आक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड वगैरह के वातावरण में छोड़ले के रूप में बा। रपट में जलवायु मॉडल सभ के भाबिस्यानुमान (प्रोजेक्शन) के सारांश ई बतावत बा की 21वीं सदी में औसत सतही तापमान 0.3 से 1.7 °C (0.5 से 3.1 °F) ले अउरी बढ़ले के संभावना बा अगर अनुमान कम से कम के बारे में लगावल जाय आ अधिक से अधिक ई 2.6 से 4.8 °C (4.7 से 8.6 °F) तक ले भी हो सकेला।[8]
ग्लोबल वार्मिंग के परभाव पूरा बिस्व के हर इलाका में बराबर ना होखी, बलुक ई एक प्रदेश से दूसरा प्रदेश के बीच अलग-अलग मात्र में रही।[9][10] गरमाहट में बढती के फल के रूप में ई अनुमान लगावल गइल बा कि एकरा से पूरा बिस्व के ताप बढ़ी, समुंद्र तल में उठान होखी, बरखा के पैटर्न में बदलाव होखी आ उपोष्णकटिबंध में रेगिस्तान सभ के बिस्तार बढ़ी।[11]