कॉण्टैक्ट लैंस
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कांटैक्ट लैंस (कांटैक्ट के नाम से भी लोकप्रिय) सामान्यतः आंख की कोर्निया (स्वच्छपटल) पर रखा जाने वाला एक सुधारक, प्रसाधनीय या रोगोपचारक लैंस होता है। 1508 में कांटैक्ट लैंसों की पहली कल्पनाओं को समझाने और रेखांकित करने का श्रेय लियोनार्डो दा विंसी को जाता है[उद्धरण चाहिए] लेकिन वास्तविक कांटैक्ट लैंसों को बनाने और आंख पर लगाने में 300 वर्षों से भी अधिक लगे। आधुनिक नर्म कांटैक्ट लैंसों का आविष्कार चेक केमिस्ट ओटो विक्टरली और उसके सहायक ड्राह्सलाव लिम ने किया, जिसने उनके उत्पादन के लिये प्रयुक्त जेल का आविष्कार भी किया।
कुछ नर्म कांटैक्ट लैंसों को हल्के नीले रंग का बनाया जाता है ताकि साफ करने और रखने के घोलों में वे आसानी से दिखाई दे सकें. कुछ कास्मेटिक लैंसों को आंख दिखावट को बदलने के लिये जानबूझ कर रंगीन बनाया जाता है। आज कल कुछ कांटैक्ट लैंसों पर आंख के प्राकृतिक लैंस को यूवी से नुकसान से बचाने के लिये यूवी रक्षात्मक सतही प्रक्रिया की जाती है।[1]
यह अनुमान है कि विश्व भर में 125 मिलियन लोग कांटैक्ट लैंसों का प्रयोग करते हैं,[2] जिनमें से युनाइटेड स्टेट्स में 28 से 38 मिलियन[2] और जापान में 13 मिलियन लोग हैं।[3] प्रयुक्त और सिफारिश किये गए लैंसों के प्रकार हर देश में भिन्न होते हैं – जापान, नीदरलैंड्स और जर्मनी में आजकल सिफारिश किये जा रहे लैंसों का 20% से अधिक कड़े लैंस होते हैं, जबकि स्कैंडिनेविया में 5% से भी कम लोग इसका प्रयोग करते हैं।[2]
लोग कांटैक्ट लैंसों का प्रयोग कई कारणों से करते हैं, जिनमें अकसर उनकी दिखावट और कार्यशीलता मुख्य होती है।[4] चश्मों की तुलना में, कांटैक्ट लैंसों पर नम मौसम का असर कम होता है, उन पर भाप नहीं जमती और वे दृष्टि का अधिक बड़ा क्षेत्र उपलब्ध करते हैं। वे खेलों की कई गतिविधियों के लिये भी उपयुक्त होते हैं। इसके अतिरिक्त केरेटोकोनस और एनाइसीकोनिया जैसे आंखों के विकारों को चश्मों से सही तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है।