काकतीय वंश
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११९० ई. के बाद जब कल्याण के चालुक्यों का साम्राज्य टूटकर बिखर गया तब उसके एक भाग के स्वामी वारंगल के मूलतः गोंड ट्राइब (काकतीय) हुए; दूसरे के द्वारसमुद्र के होएसल और तीसरे के देवगिरि के जाधव हुए। स्वाभाविक ही यह भूमि काकतीयों के अन्य शक्तियों से संघर्ष का कारण बन गई। काकतीयों की शक्ति प्रोलराज द्वितीय के समय विशेष बढ़ी। उसके पौत्र गणपति ने दक्षिण में कांची तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। गणपति की कन्या रुद्रंमा इतिहास में प्रसिद्ध हो गई है। उसकी शासननीति के प्रभाव से काकतीय साम्राज्य की समुन्नति हुई। वेनिस के यात्री मार्को पोलो ने रुद्रंमा की बड़ी सराहना की है।
काकतीय वंश | |||||||||||||||||||
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1000[1]–1326 | |||||||||||||||||||
काकतीय का नक्शा, लगभग 1000-1326 CE.[3] | |||||||||||||||||||
Status | Empire (पश्चिमी चालुक्य के अधीन 1163 तक) | ||||||||||||||||||
राजधानी | ओरुगल्लू (वारंगल) | ||||||||||||||||||
प्रचलित भाषाएँ | तेलुगू, संस्कृत, कन्नडा[4] | ||||||||||||||||||
धर्म | गोंडी धर्म | ||||||||||||||||||
सरकार | साम्राज्य | ||||||||||||||||||
King | |||||||||||||||||||
इतिहास | |||||||||||||||||||
• Earliest rulers | ल. 800 | ||||||||||||||||||
• स्थापित | 1000[1] | ||||||||||||||||||
• अंत | 1326 | ||||||||||||||||||
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अब जिस देश का हिस्सा है | भारत |
काकतीय युग ने वास्तुकला की एक विशिष्ट शैली के विकास को भी देखा, जिसने मौजूदा तरीकों में सुधार और नवाचार किया।[5] सबसे उल्लेखनीय उदाहरण हनमकोंडा में हजार स्तंभ मंदिर, पालमपेट में रामप्पा मंदिर, वारंगल किला, गोलकुंडा किला और घनपुर में कोटा गुल्लू हैं।