कुष्ठरोग
जीवाणुओं के कारण होने वाली एक दीर्घकालिक बीमारी / From Wikipedia, the free encyclopedia
कुष्ठरोग (Leprosy) या हैन्सेन का रोग (Hansen’s Disease) (एचडी) (HD), चिकित्सक गेरहार्ड आर्मोर हैन्सेन (Gerhard Armauer Hansen) के नाम पर, माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) और माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस (Mycobacterium lepromatosis) जीवाणुओं के कारण होने वाली एक दीर्घकालिक बीमारी है।[1][2] कुष्ठरोग मुख्यतः ऊपरी श्वसन तंत्र के श्लेष्म और बाह्य नसों की एक ग्रैन्युलोमा-संबंधी (granulomatous) बीमारी है; त्वचा पर घाव इसके प्राथमिक बाह्य संकेत हैं।[3] यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो कुष्ठरोग बढ़ सकता है, जिससे त्वचा, नसों, हाथ-पैरों और आंखों में स्थायी क्षति हो सकती है। लोककथाओं के विपरीत, कुष्ठरोग के कारण शरीर के अंग अलग होकर गिरते नहीं, हालांकि इस बीमारी के कारण वे सुन्न तथा/या रोगी बन सकते हैं।[4][5]
- हिब्रू बाइबिल शब्दावली और इसके विभिन्न अर्थों के लिये, ज़ार्थ (Tzaraath) देखें. अन्य उपयोगों के लिये कुष्ठरोग (स्पष्टीकरण) देखें.
कुष्ठरोग (हैनसेरोग) वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
कुष्ठरोग से ग्रस्त एक 24-वर्षीय पुरुष. | |
आईसीडी-१० | A30. |
आईसीडी-९ | 030 |
ओएमआईएम | 246300 |
डिज़ीज़-डीबी | 8478 |
मेडलाइन प्लस | 001347 |
ईमेडिसिन | med/1281 derm/223 neuro/187 |
एम.ईएसएच | C01.252.410.040.552.386 |
कुष्ठरोग ने 4,000 से भी अधिक वर्षों से मानवता को प्रभावित किया है,[6] और प्राचीन चीन, मिस्र और भारत की सभ्यताओं में इसे बहुत अच्छी तरह पहचाना गया है।[7] पुराने येरुशलम शहर के बाहर स्थित एक मकबरे में खोजे गये एक पुरुष के कफन में लिपटे शव के अवशेषों से लिया गया डीएनए (DNA) दर्शाता है कि वह पहला मनुष्य है, जिसमें कुष्ठरोग की पुष्टि हुई है।[8] 1995 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन) (डब्ल्यूएचओ) (WHO) के अनुमान के अनुसार कुष्ठरोग के कारण स्थायी रूप से विकलांग हो चुके व्यक्तियों की संख्या 2 से 3 मिलियन के बीच थी।[9] पिछले 20 वर्षों में, पूरे विश्व में 15 मिलियन लोगों को कुष्ठरोग से मुक्त किया जा चुका है।[10] हालांकि, जहां पर्याप्त उपचार उपलब्ध हैं, उन स्थानों में मरीजों का बलपूर्वक संगरोध या पृथक्करण करना अनावश्यक है, लेकिन इसके बावजूद अभी भी पूरे विश्व में भारत (जहां आज भी 1,000 से अधिक कुष्ठ-बस्तियां हैं),[10] चीन,[11] रोमानिया,[12] मिस्र, नेपाल, सोमालिया, लाइबेरिया, वियतनाम[13] और जापान[14] जैसे देशों में कुष्ठ-बस्तियां मौजूद हैं। एक समय था, जब कुष्ठरोग को अत्यधिक संक्रामक और यौन-संबंधों के द्वारा संचरित होने वाला माना जाता था और इसका उपचार पारे के द्वारा किया जाता था- जिनमें से सभी धारणाएं सिफिलिस (syphilis) पर लागू हुईं, जिसका पहली बार वर्णन 1530 में किया गया था। अब ऐसा माना जाता है कि कुष्ठरोग के शुरुआती मामलों से अनेक संभवतः सिफिलिस (syphilis) के मामले रहे होंगे.[15] अब यह ज्ञात हो चुका है कि कुष्ठरोग न तो यौन-संपर्क के द्वारा संचरित होता है और न ही उपचार के बाद यह अत्यधिक संक्रामक है क्योंकि लगभग 95% लोग प्राकृतिक रूप से प्रतिरक्षित होते हैं[16] और इससे पीड़ित लोग भी उपचार के मात्र 2 सप्ताह बाद ही संक्रामक नहीं रह जाते.
कुष्ठरोग के उन्नत रूपों से जुड़ा सदियों पुराना सामाजिक-कलंक, दूसरे शब्दों में कुष्ठरोग का कलंक,[17] अनेक क्षेत्रों में आज भी मौजूद है और यह अभी भी स्व-सूचना और जल्द उपचार के प्रति एक बड़ी बाधा बना हुआ है। 1930 के दशक के अंत में डैप्सोन (dapsone) और इसके व्युत्पन्नों की प्रस्तुति के साथ ही कुष्ठरोग के लिये प्रभावी उपचार प्राप्त हुआ। शीघ्र ही डैप्सोन (dapsone) के प्रति प्रतिरोधी कुष्ठरोग दण्डाणु विकसित हो गया और डैप्सोन (dapsone) के अति-प्रयोग के कारण यह व्यापक रूप से फैल गया। 1980 के दशक के प्रारंभ में बहु-औषधि उपचार (मल्टीड्रग थेरपी) (एमडीटी) (MDT) के आगमन से पूर्व तक समुदाय के भीतर इस बीमारी का निदान और उपचार कर पाना संभव नहीं हो सका था।[18]
बहु-दण्डाणुओं के लिये एमडीटी (MDT) 12 माह तक ली जाने वाली राइफैम्पिसिन (rifampicin), डैप्सोन (dapsone) और क्लोफैज़िमाइन (clofazimine) से मिलकर बना होता है। बच्चों और वयस्कों के लिये उपयुक्त रूप से समायोजित खुराकें सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ब्लिस्टर के पैकेटों के रूप में उपलब्ध हैं।[18] एकल घाव वाले कुष्ठरोग के लिये एकल खुराक वाला एमडीटी (MDT) राइफैम्पिसिन (rifampicin), ऑफ्लॉक्सैसिन (ofloxacin) और माइनोसाइक्लाइन (minocycline) से मिलकर बना होता है। एकल खुराक वाली उपचार रणनीतियों की ओर बढ़ने के कारण कुछ क्षेत्रों में इस बीमारी के प्रसार में कमी आई है क्योंकि इसका प्रसार उपचार की अवधि पर निर्भर होता है।
कुष्ठरोग और इसके पीड़ितों के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिये विश्व कुष्ठरोग दिवस (वर्ल्ड लेप्रसी डे) की स्थापना की गई।