फिल्टर बबल
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फिल्टर बबल या वैचारिक फ्रेम विचारो के अलगाव की स्थिति है [1] जो व्यक्तिगत खोजों से बन सकती है। ये तब हो सकता है जब एक वेबसाइट एल्गोरिदम यूज़र जानकारी के आधार, जैसे स्थान, पिछले क्लिक-व्यवहार, और खोज इतिहास, पर यूज़र को यूज़र के पसंद का कंटेंट ज़्यादा दिखाने लगता है। [2] नतीजन, यूज़र उन सूचनाओं से अलग हो जाते है जो उनके विचारो से अलग हो, जिससे वो खुद के सांस्कृतिक या वैचारिक बुलबुले में अलग हो जाते है। इसके वजह से उनका दुनिया का नज़रिया सीमित हो जाता है। [3]
फिल्टर बुलबुला शब्द इंटरनेट सक्रियवादी एली पेरिसर ने 2010 में गढ़ा था। पेरिसर के इसी नाम की प्रभावशाली पुस्तक, द फिल्टर बबल (2011), में ये भविष्यवाणी की गई थी कि एल्गोरिथम फिल्टरिंग द्वारा इंसानी वयक्तिकरण विचारो के अलगाव को जन्म देगा। [4] पेरिसर के हिसाब से, बुलबुला प्रभाव का बोलने की आज़ादी पर गलत असर हो सकता है, लेकिन दूसरे लोग प्रभाव के असर को ना के बराबर [5] और आसानी से संभल जाने वाला मानते है। [6] पेरिसर के हिसाब से, यूज़रों को विरोधी दृष्टिकोण दिखने का संभावना कम मिलती है और वो अपने सूचनात्मक बुलबुले में दिमागी रूप से अलग-थलग पड़ जाते हैं। [7]
उन्होंने एक उदाहरण दिया जिसमें एक यूज़र ने "बीपी" (एक कंपनी) के लिए गूगल पर खोज की और ब्रिटिश पेट्रोलियम के बारे में निवेश समाचार पाएं, जबकि एक दूसरे खोजनेवाले को डीपवॉटर होराइज़न तेल रिसाव के बारे में जानकारी मिली। उन्होने नोट किया कि दोनो खोज नतीजे पन्ने "बहुत ज़्यादा अलग" थे, दोनो के खोज शब्द के एक होते हुए भी। [7] [8] [9] [5]
2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के असर से जुड़े हुए है, [10] [11] और इसके परिणामस्वरूप यूज़र पर नकली समाचार और प्रतिध्वनि चेम्बर जैसे "फिल्टर बुलबुले" के प्रभावों पर सवाल उठाए गए। [12] इससे शब्द में नई रुचि पैदा हुई। [13] कई लोग इस बात पर चिंता करने लगे कि गलत सूचना के असर लोकतंत्र और भलाई काम को कैसे नुकसान पहुंचा सकते है। [14] [15] [13] [16] [17] [18]