भारत-जापान सम्बन्ध
द्विपक्षीय संबंध / From Wikipedia, the free encyclopedia
भारत और जापान के सम्बन्ध सदैव बहुत मजबूत और स्थिर रहे हैं। जापान की संस्कृति पर भारत में जन्मे बौद्ध धर्म का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान भी जापान की राजकीय सेना ने सुभाष चन्द्र बोस जी की आजाद हिन्द फौज को सहायता प्रदान की थी। भारत की स्वतन्त्रता के बाद से भी अब तक दोनों देशों के बीच मधुर सम्बन्ध रहे हैं।
जापानी प्रधानमन्त्री शिंज़ो अबे के आर्क ऑफ़ फ़्रीडम सिद्धान्त के अनुसार यह जापान के हित में है कि वह भारत के साथ मधुर सम्बन्ध रखे विशेष रूप से उसके चीन के साथ तनाव पूर्ण रिश्तों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो। भारत की ओर से भी चीन के साथ रिश्तों और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जापान को बहुत महत्व दिया गया है। पूर्व प्रधानमन्त्री डॉ॰ मनमोहन सिंह सरकार की पूर्व की ओर देखो नीति ने भारत को जापान के साथ मधुर और पहले से बेहतर सम्बन्ध बनाने की ओर प्रेरित किया है। वर्तमान प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी ने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर किसी द्विपक्षीय विदेश यात्रा के लिए सर्वप्रथम जापान को चुना[1]
जापान की कई कम्पनियाँ जैसे कि सोनी, टोयोटा और होण्डा ने अपनी उत्पादन इकाइयाँ भारत में स्थापित की हैं और भारत की आर्थिक विकास में योगदान दिया है। इस क्रम में सबसे अभूतपूर्व योगदान है वहाँ की मोटर वाहन निर्माता कम्पनी सुज़ुकी का जो भारत की कम्पनी मारुति सुजुकी के साथ मिलकार उत्पादन करती है और भारत की सबसे बड़ी मोटर कार निर्माता कम्पनी है। होण्डा कुछ ही दिनों पहले तक हीरो होण्डा (अब हीरो मोटोकॉर्प व होण्डा मोटर्स) के रूप में हीरो कम्पनी के पार्टनर के रूप में कार्य करती रही है जो तब दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाइकिल विक्रेता कम्पनी थी। जापान ने भारत में अवसंरचना विकास के कई परियोजनाओं का वित्तीयन किया है और इनमें तकनीकी सहायता उपलब्ध करायी है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण रूप से उल्लेखनीय है दिल्ली मेट्रो रेल का निर्माण।