शारीरिक शिक्षा
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शारीरिक शिक्षा प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के समय में पढ़ाया जाने वाला एक पाठ्यक्रम है। इस शिक्षा से तात्पर्य उन प्रक्रियाओं से है जो मनुष्य के शारीरिक विकास तथा कार्यों के समुचित संपादन में सहायक होती हैं।[1]
यदि कोई सर्वेक्षण किया जाए और व्यक्तियों से पूछा जाए कि शारीरिक शिक्षा शब्द शुनकर उन्हें क्या समझ आया, तो उत्तर सम्भवतः यह हो सकता है कि शारीरिक शिक्षा खेल गतिविधि, खेल शिक्षा, खेल प्रशिक्षण से सम्बन्धित ज्ञान है। स्वास्थ्य शिक्षा, योग के बारे में शिक्षा या वैयक्तिक औचित्य से सम्बन्धित कोई भी क्रीड़ा।
शारीरिक शिक्षा उपरोक्त सभी और उससे भी कुछ अधिक है। यद्यपि उपरोक्त गतिविधियाँ शारीरिक शिक्षा से जुड़ी हैं, किन्तु ये सब शारीरिक शिक्षा के बारे में नहीं हैं। संक्षेप में शारीरिक शिक्षा किसी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वरूप में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु शारीरिक गतिविधि या गति का उपयोग करती है। यह शिक्षा का एक व्यापक क्षेत्र है जो शारीरिक कल्याण और गतिविधि और शिक्षा के अन्य क्षेत्रों के मध्य सम्बन्धों से सम्बन्धित है।
शारीरिक शिक्षा दो भिन्न शब्दों, शारीरिक और शिक्षा से मिलकर बना है। शारीरिक अर्थात् शरीर अथवा किसी एक या सभी शारीरिक विशेषताओं से सम्बन्धित, जिसमें शारीरिक शक्ति, शारीरिक सहनशक्ति, शारीरिक औचित्य, शारीरिक उपस्थिति और शारीरिक स्वास्थ्य शामिल हैं। शिक्षा अर्थात् जीवन की प्रस्तुति या व्यवस्थित निर्देश और प्रशिक्षण।
यदि इन दो शब्दों के संयुक्त अर्थ को देखते हैं, तो हम समझ सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा किसी व्यक्ति के निज शरीर का उपयोग करके शरीर के विकास और रक्षणावेक्षण, चालक कौशल और शारीरिक क्षमताओं को विकसित करने के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु एक व्यवस्थित प्रशिक्षण है। स्वस्थ जीवन शैली जीने की आदत बनाना और पूर्ण जीवन जीने के लिए भावनाओं को नियन्त्रित करने की क्षमता विकसित करना।
आधुनिक सन्दर्भ में, शारीरिक शिक्षा केवल शारीरिक संचलन के माध्यम से शारीरिक औचित्य के बजाय समग्र औचित्य और कल्याण प्राप्त करने पर जोर देती है। वस्तुतः शारीरिक शिक्षा को अब संचलन शिक्षा कहा जाता है। यह इंगित करता है कि कुशल संचालक गतिविधि विकसित करने हेतु शरीर कैसे चलता है।
संचलन मूलतः यान्त्रिक सिद्धान्तो द्वारा नियन्त्रित होता है। एक व्यक्ति को उन शक्तियों को जानना चाहिए जो संचलन के दौरान शरीर पर कार्य करती हैं ताकि गति सार्थक हो। संचलन विभिन्न कारकों से प्रभावित होती है जैसे शारीरिक औचित्य, भय और चिन्ता से सम्बन्धित भावनात्मक पहलू और, वायुमण्डलीय परिवर्तन।
संचलन सभी मनुष्यों हेतु अभिन्नांग है। इसमें गमनीय संचलन, जैसे दौड़न, कूर्दन आदि शामिल हैं, जो आवश्यक संचलन हैं, और अगमनीय संचलन जैसे मुड़ना, घूमना आदि शामिल हैं। संचलन भी संचार का एक साधन है। संचलन शिक्षा में, व्यक्तियों को आत्मान्वेषण की स्वतन्त्रता होती है और उन्हें संचलनों से जुड़ी समस्याओं का स्वयं समाधान खोजने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है। वे ऐसे तरीके चुनते हैं जो उनकी क्षमताओं हेतु सबसे उपयुक्त होते हैं और वे संचलन करते हैं जो वे चाहते हैं। संचलन शिक्षा कक्षाओं में, छात्रों को संचलन के अपने तरीकों का पालन करने की स्वतन्त्रता दी जाती है।
इसलिए, यह आवश्यक है कि शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम में अपनाए जाने वाला पाठ्यक्रम मनुष्य की समग्र औचित्य पर केन्द्रित हो जो कि आज के युवाओं और देश की भी आवश्यकता है, व्यक्तियों को अपनी समग्र औचित्य को महत्त्व देने हेतु शिक्षित करना और उन्हें इसका सुधार और आकलन करने का परामर्श देना।