अरस्तु
एक महान यूनानी दार्शनिक / From Wikipedia, the free encyclopedia
अरस्तु (यूूनानी: Ἀριστοτέλης, अरीस्तोतेलीस्, 384 ईपू – 322 ईपू) प्राचीन यूनानी दार्शनिक और बहुश्रुत थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था और वे प्लेटो के शिष्य और सिकंदर के गुरु थे। उनके लेखन में प्राकृतिक विज्ञान, दर्शन, भाषाविज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति, मनोविज्ञान, सौंदर्यशास्त्र और कला जैसे विषयों का एक विस्तृत परिक्षेत्र शामिल है । एथेंस के लाइसियम में दर्शनशास्त्र के परिव्राजक-संप्रदाय के संस्थापक के रूप में उन्होंने एक व्यापक अरस्तुवादी परंपरा की शुरुआत की, जिसने आधुनिक विज्ञान के विकास के लिए आधार तैयार किया ।
व्यक्तिगत जानकारी | |
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जन्म | 384 ईसा पूर्व स्टैगिरा , चाल्कीडियन लीग |
मृत्यु | 322 ईसा पूर्व (उम्र 61-62 वर्ष) चाल्सिस , यूबोइया , मैकेडोनियन साम्राज्य, यूनान |
वृत्तिक जानकारी | |
मुख्य कृतीयाँ | |
युग | प्राचीन यूनानी दर्शन |
क्षेत्र | पाश्चात्य दर्शन |
विचार सम्प्रदाय (स्कूल) | |
उल्लेखनीय छात्र | सिकंदर महान , थियोफ्रेस्टस , अरिस्टोक्सेनस |
राष्ट्रीयता | यूनानी |
मुख्य विचार | |
प्रमुख विचार | अरस्तुवाद
सैद्धांतिक दर्शन
अरस्तुवादी तर्कशास्त्र, न्यायवाक्य
चार कारण जाति और अवच्छेदक पुद्गलाकारवाद्, पदार्थ, सार, आगन्तुक गुण भौतिक अधिष्ठान शक्यता और वास्तविकता समान्य तत्वों का सिद्धांत आद्य चालक प्राकृतिक दर्शन
अरस्तुवादी जैविकी
अरस्तुवादी भौतिकी सहज बुद्धि संसार की सनातनता पाँच विवेक हौरर वकुइ तत्त्वों का सिद्धांत, ऐथर तार्किक प्राणी व्यवहारिक दर्शन
अरस्तुवादी नीतिशास्त्र
विरेचन विचारविमर्शी, प्रदर्शनिय और न्यायालयिक वाग्मिता लुप्तावयव न्यायवाक्य और पैरादीएग्मा राज्य के प्रारूप के रूप में परिवार स्वर्ण माध्य काइक्लोस् महानुभावता अनुकृति प्राकृतिक दासता बौद्धिक सद्गुण: सोफिया, एपिस्तमे(ज्ञान), चित्ततत्त्व, फ्रोनेसिस्(व्यवहारिक प्रज्ञा), तेख्ने तीन आग्रह: लोकाचार(एथोस्), लोगोस्, मनोभावुकता(पैथोस्) महिलाओं पर मत |
शिक्षा | प्लैटोनीय अकादमी |
प्रभाव
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प्रभावित
इब्न-रश्दवाद, इब्न्-सिनावाद, साहित्यिक नव-अरस्तुवाद , मैमोनिदीज़वाद, वस्तुवाद, परिव्राजक-संप्रदाय, पांडित्यवाद (ल्लुल्लवाद, नव, स्कॉटवाद, द्वितीय, थॉमसवाद, इत्यादि), साथ में माध्यमिक प्लेटोवाद और नवप्लेटोवाद।
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अरस्तू के जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है। उनका जन्म श्रेण्य काल के दौरान उत्तरी ग्रीस के स्टैगिरा नगर में हुआ था । जब अरस्तू बच्चे थे, तब उनके पिता निकोमेकस की मृत्यु हो गई और उसका पालन-पोषण एक अभिभावक द्वारा किया गया। सत्रह या अठारह साल की उम्र में वह एथेंस में प्लेटो की अकादमी में शामिल हो गए और सैंतीस साल की उम्र ( लगभग 347 ईसा पूर्व ) तक वहीं रहे। प्लेटो की मृत्यु के कुछ ही समय बाद, अरस्तू ने एथेंस छोड़ दिया और, मैकेदोन के फिलिप द्वितीय के अनुरोध पर , 343 ईसा पूर्व में उनके बेटे सिकंदर महान को पढ़ाया । उन्होंने लाइसियम में एक पुस्तकालय की स्थापना की जिससे उन्हें पेपाइरस पत्रावलीयों पर अपनी सैकड़ों पुस्तकों का उत्पादन करने में मदद मिली।
हालाँकि अरस्तू ने प्रकाशन के लिए कई महान ग्रंथ और संवाद लिखे, लेकिन उनके मूल निष्पाद का केवल एक तिहाई ही बचा है , जिसमें से कोई भी प्रकाशन के लिए नहीं था। अरस्तू ने अपने से पहले मौजूद विभिन्न दर्शनों का एक जटिल संश्लेषण प्रदान किया। सबसे बढ़कर, यह उनकी शिक्षाओं से ही था कि पश्चिम को अपनी बौद्धिक शब्दावली (कोश) , साथ ही समस्याएं और अन्वीक्षण की विधियाँ विरासत में मिल सकी। परिणामस्वरूप, उनके दर्शन ने पश्चिम में ज्ञान के लगभग हर रूप पर अद्वितीय प्रभाव डाला है और यह समकालीन दार्शनिक चर्चा का विषय बना हुआ है।
अरस्तू के विचारों ने मध्ययुगीन विद्वता को गहराई से आकार दिया । इनके भौतिक विज्ञान के प्रभाव ने प्राचीन काल के अंत और प्रारंभिक मध्य युग से लेकर पुनर्जागरण तक विस्तार किया , और इसे तब तक व्यवस्थित रूप से प्रतिस्थापित नहीं किया गया जब तक कि ज्ञानोदय और चीरसम्मत यांत्रिकी जैसे सिद्धांत विकसित नहीं हो गए। अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया। अरस्तू के जीव विज्ञान में पाए गए कुछ प्राणीशास्त्रीय अवलोकन , जैसे कि ऑक्टोपस की निषेचनांग (प्रजनन) भुजा पर , 19वीं शताब्दी तक अविश्वास किया गया था।[1] उन्होंने मध्य युग के दौरान यहूदी-इस्लामी दर्शन के साथ ईसाई धर्ममीमांसा को भी प्रभावित किया , विशेष रूप से प्रारंभिक चर्च के नवप्लेटोवाद और कैथोलिक चर्च की पांडित्यवाद परंपरा को । मध्ययुगीन मुस्लिम विद्वानों के बीच अरस्तू को "प्रथम शिक्षक" के रूप में और थॉमस एक्विनास जैसे मध्ययुगीन ईसाइयों के बीच उन्हें "दार्शनिक (द फिलॉस्फर)" के रूप में सम्मानित किया गया था, जबकि कवि दांते ने उन्हें "उन लोगों का गुरु कहा था जो जानते हैं"। उनके कार्यों में तर्क का सबसे पहला ज्ञात औपचारिक अध्ययन शामिल है, और इसका अध्ययन पीटर एबेलार्ड और जॉन बुरिडन जैसे मध्ययुगीन विद्वानों द्वारा किया गया । तर्कशास्त्र पर अरस्तू का प्रभाव 19वीं शताब्दी तक जारी रहा और ये आज भी प्रासांगिक हैं।। इसके अलावा, उनका नीतिशास्त्र, जो हमेशा से प्रभावशाली रहा, लेकिन सद्गुण नैतिकता के आधुनिक आगमन के साथ हालांकि इसमें नए सिरे से रूचि पैदा हुई है। अरस्तु का राजनीतिक दर्शन पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स व काव्यशास्त्र पर पोएटिक्स् नामक ग्रंथ है जो सौंदर्यशास्त्र की एक महत्त्वपूर्ण रचना है।[2] अरस्तु ने जन्तु इतिहास नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में लगभग 500 प्रकार के विविध जन्तुओं की रचना, स्वभाव, वर्गीकरण, जनन आदि का व्यापक वर्णन किया गया।[उद्धरण चाहिए]